विवाह से पहले रिश्तों पर नज़र
(Wedding Investigations: Trends Of Pre-Matrimonial Investigation In India)
विवाह से पहलेजासूसी (wedding Detectives) का ट्रेंड
भारत में तेज़ी
से बढ़ता जा
रहा है. मज़े
की बात यह
है कि न
स़िर्फ लड़केवाले लड़कियों की
और लड़कीवाले लड़के
की जासूसी करवाते
हैं, बल्कि वे
एक-दूसरे के
परिवारों की भी
जासूसी करवाने लगे हैं.
विश्वास-अविश्वास की
उधेड़बुन में समाज
व विवाह के
बदलते परिवेश और
मायने अब अलग
स्वरूप में हमारे
सामने आ रहे
हैं. लोग अब
शादी से पहले
यह तसल्ली कर
लेना चाहते हैं
कि जिनसे रिश्ता
वो जोड़ने जा
रहे हैं, वो
विश्वास योग्य
हैं भी या
नहीं.
यही वजह
है कि प्री
मैट्रिमोनियल इंवेस्टिगेशन का चलन
अब तेज़ी से
हमारे समाज में
बढ़ भी रहा
है और लोगों
को लुभा भी
रहा है.
क्या-क्या जानना चाहते हैं लोग?
– लड़केवाले
यह जानना चाहते
हैं कि लड़की
का कहीं अफेयर
तो नहीं चल
रहा.
– वो घर का
काम-काज ठीक
से करती है
या नहीं. ज़्यादा
ग़ुस्सेवाली तो नहीं.
– स्पेंडिंग
हैबिट्स कैसी है
यानी ज़्यादा शॉपिंग
तो नहीं करती.
– ऑनलाइन चैटिंग हिस्ट्री, सोशल
नेटविर्किंग साइट्स पर उसके
स्टेटस अपडेट्स, फोटोज़ आदि
कैसे हैं.
– पार्टीज़ किन दोस्तों
के साथ करती
है. सिगरेट-शराब
भी पीती है
क्या आदि.
– इसी तरह से
लड़कीवाले लड़के की
सैलरी और ऑफिस
में उसकी रेप्यूटेशन
के बारे में
जानना चाहते हैं.
– उसके अफेयर्स व गर्लफ्रेंड्स,
कैरेक्टर आदि की
जानकारी.
– उसके दोस्त किस तरह
के हैं. सिगरेट,
शराब की लत
तो नहीं.
– कितना ओपनमाइंडेड है?
– लोन वगैरह या ज़मीन-जायदाद से संबंधित
कोई केस तो
नहीं?
– करियर को लेकर
कितना सीरियस है?
– लड़का कहीं ममाज़
बॉय तो नहीं.
– अपनी मां की
हर बात सुनता
है या ख़ुद
अपने निर्णय भी
लेता है.
– लड़का अपनी सैलरी
किस तरह से
ख़र्च करता है?
क्या पूरी सैलरी
मां के हाथों
में देता है?
– होनेवाला
पति अपनी मां
के कितने कंट्रोल
में रहता है?
– लड़के की बहन
व भाई का
स्वभाव कैसा है?
अब यहां से
कहानी में ट्विस्ट
आता है. वो
ट्विस्ट यह है
कि होनेवाली बहू
अपनी सास की
और होनेवाली सास
अपनी बहू की
भी अलग से
जासूसी करवाती हैं.
बहू क्या-क्या
जासूसी करवाती है?
– होनेवाली
सास का स्वभाव
कैसा है? कहीं
बहुत अधिक ग़ुस्सेवाली
या अंधविश्वासी
तो नहीं?
– पूरे घर पर
क्या उसी का
राज चलता है?
– उनकी सोच कितनी
मॉडर्न है?
– क्या वो शॉपिंग
करना पसंद करती
हैं?
– घर का कामकाज
ख़ुद करती हैं
या किसी और
से करवाती हैं?
सास क्या-क्या जानना चाहती हैं?
– लड़की उसके कितने
कंट्रोल में रहेगी?
– कहीं ज़्यादा बोलनेवाली तो
नहीं?
– बहुत ज़्यादा खुले विचारों
की तो नहीं?
– कहीं ज़्यादा ख़र्चीली तो
नहीं?
– घर का काम
कितना कर सकेगी?
– कहीं अधिक करियर
ओरिएंटेड तो नहीं?
एक्सपर्ट ओपिनियन
प्री मेट्रिमोनियल का ट्रेंड इंडिया में इतनी तेज़ी से क्यों बढ़ रहा है. आख़िर इसके फ़ायदे क्या हैं और क्या कुछ नुक़सान भी हो सकते हैं? इस तरह के तमाम सवालों के जवाब जानने के लिए हमने बात की भारत की डिटेक्टिव एजेंसी फॉरेंसिक डिटेक्टिव के मैनेजिंग डायरेक्टर मेजर श्री अशोक भल्ला से!
“अगर हम 10 वर्ष पहले
की बात करें,
तो मुश्किल से
हर महीने 15 केसेस
हमारे पास आते
थे, लेकिन प्रीमैट्रिमोनियल इंवेस्टिगेशन का ट्रेंड
इतनी तेज़ी से
बढ़ा कि आज
की तारीख़ में
हर महीने 85 केसेस
हमारे पास आते
हैं.
– इसकी सबसे बड़ी
वजह यह है
कि समय के
साथ-साथ टेक्नोलॉजी
हमारी लाइफस्टाइल का
इतना अभिन्न हिस्सा
बन गई है
कि अब शादियां
व रिश्ते भी
मैट्रीमोनियल साइट्स, ऑनलाइन या
सोशल नेटवर्किंग साइट्स
के ज़रिए अधिक
होने लगे हैं.
ऐसे में यह
ख़तरा भी बना
रहता है कि
कहीं धोखा न
हो जाए या
ग़लत इंसान से
रिश्ता न जुड़
जाए.
– बीते व़क्त में रिश्ते
जोड़ने का काम
रिश्तेदार या दोस्त
वग़ैरह ही करते
थे, लेकिन अब
ऐसा नहीं रह
गया है. दूसरी
तरफ़ यदि आज
की तारीख़ में
भी यदि रिश्ता
जान-पहचानवालों के
ज़रिए भी होता
है, तब भी
पूरी तरह से
छान-बीन करना
ज़रूरी है, क्योंकि
लोगों में जागरूकता
बढ़ी है. वो
अलर्ट हो गए
हैं. जिस तेजी
के साथ तलाक़
के मामले बढ़
रहे हैं, ऐसे
में शादी जैसा
महत्वपूर्ण फैसला आंख मूंदकर
नहीं लिया जा
सकता.
– शिक्षा का स्तर
बढ़ने के साथ-साथ लोगों
में जागरूकता आई
है, ऐसे में
शादी ज़िंदगी का
बहुत बड़ा फैसला
होती है और
हर किसी की
कोशिश यही रहती
है कि उसे
सही लाइफपार्टनर मिले,
ताकि उसका यह
रिश्ता ताउम्र टिका रहे.
– हमारे जैसी एजेंसीज़
उनकी मदद प्रोफेशनल
तरी़के से कर
सकती हैं, क्योंकि
कोई लड़का या
लड़की कैसे हैं,
उनका कैरेक्टर, उनकी
लाइफस्टाइल आदि बातें
शायद उनके पैरेंट्स
भी इतनी अच्छी
तरह से नहीं
जान पाते, जितना
हम पता कर
सकते हैं.
– अगर किसी दोस्त
या रिश्तेदार की
मदद से कोई
रिश्ता हो रहा
है, तो वो
मात्र ऊपरी तौर
पर ही यह
बता सकता है
कि परिवार कैसा
है यानी सब
कुछ स़िर्फ अंदाज़े
पर निर्भर करता
है. ऐसे में
शादी एक रिस्क
या ट्रायल-एरर
मेथड बन जाती
है, लेकिन आज
की जेनरेशन शत-प्रतिशत आश्वस्त
होना चाहती है
अपने इस फैसले
को लेकर.
– इन मामलों में स़िर्फ
एक्सपर्ट्स ही उनकी
मदद कर सकते
हैं. यही वहज
है कि प्रीमैट्रिमोनियल इंवेस्टिगेशन तेज़ी से
बढ़ रहा है.
जहां तक भारत
का सवाल है,
तो हमने इसकी
शुरुआत की और
पिछले 17 वर्षों से हम
मार्केट में हैं.
हमारा अनुभव यही
कहता है कि
यह ट्रेंड और
भी बढ़ेगा, क्योंकि
इसके स़िर्फ फ़ायदे
ही फ़ायदे हैं,
नुक़सान ज़ीरो परेसेंट
है यानी कोई
नुक़सान नहीं.
– हम पर लोगों
का भरोसा बढ़
रहा है, क्योंकि
वो भी जानते
हैं कि यह
काम आसान नहीं,
इसमें कई चुनौतियां
होती हैं, जिनका
सामना स़िर्फ एक्सपर्ट्स
ही कर सकते
हैं.
– लड़के व लड़कियां
दोनों ही तरफ़
से समान रूप
से इंवेस्टिगेशन के
केसेस आते हैं.
सामान्यत: कैरेक्टर, अफेयर्स, फाइनेंशियल
स्टेटस, पास्ट हिस्ट्री (जैसे-
कोई सगाई या
शादी टूटी हो,
तो), मेडिकल कंडिशन,
सायकोलॉजिकल डिसऑर्डर, क्रिमिनल बैकग्राउंड,
एजुकेशन, करियर, कोई बुरी
लत आदि की
जानकारी ली जाती
है. लेकिन कभी-कभार लोग
एक स्टेप आगे
बढ़कर एचआईवी या
गोत्र आदि की
जानकारी की भी
डिमांड करते हैं.
अब एचआईवी का
मामला तो ऐसा
है कि शायद
जो स्वयं इससे
इंफेक्टेड होते हैं,
वो भी तब
तक नहीं जान
पाते, जब तक
कि अंजाने में
उनके सामने यह
खुलासा नहीं हो
जाता है.
– स़िर्फ लड़का-लड़की
ही एक-दूसरे
के बारे में
नहीं, दोनों परिवार
के लोग भी
एक-दूसरे के
बारे में जानने
की इच्छा रखते
हैं. होनेवाले सास-ससुर का
स्वभाव, लोन या
लेन-देन से
जुड़े मामले, कोर्ट-कचहरी व आर्थिक
स्थिति आदि बातें
इसमें शामिल होती
हैं.
– कुल मिलाकर यही कह
सकते हैं कि
शादी उम्रभर का
साथ होता है
और टेक्नोलॉजी के
युग में इससे
जुड़े रिस्क भी
बढ़ रहे हैं,
ऐसे में परफेक्ट
लाइफ पार्टनर ढूंढ़ना
आसान नहीं, लेकिन
प्री मैट्रिमोनियल इंवेस्टिगेशन
काफ़ी हद तक
इसमें लोगों की
मदद कर सकती
है.”
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